गीता प्रेस, गोरखपुर >> सुन्दर समाज का निर्माण सुन्दर समाज का निर्माणस्वामी रामसुखदास
|
3 पाठकों को प्रिय 376 पाठक हैं |
प्रस्तुत है सुन्दर समाज का निर्माण कैसे करे।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
नम्र निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक में हमारे श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
द्वारा वि.सं. 2038 में बीकानेर चातुर्मास तथा वि.सं. 2039 में जयपुर
चातुर्मास के अवसर पर दिये गये कुछ सर्वोपयोगी प्रवचनों का संग्रह किया
गया है। इस साहित्य के प्रेमी पाठक-गण पूज्यवर स्वामीजी से परिचित हैं ही।
आपके सिद्धान्तों, उपदेशों तथा वचनों से असंख्य नर-नारी आध्यात्मिक लाभ
उठा चुके हैं और उठा रहे हैं।
वर्तमान समय में प्रस्तुत प्रवचनों की उपादेयता गृहस्थियों, भाइयों, बहिनों, साधकों, विद्यार्थियों अर्थात् समाज के सभी वर्गों के लिये है। आवश्यकता केवल लाभ लेने के निश्चय की है। इन सब बातों को पढ़ने-सुनने मात्र से भी लाभ तो होता ही है, पर काम में लाने से बहुत लाभ होता है। अत: पाठकों से निवेदन है कि इन प्रवचनों में कही गयी बातों के अनुसार जीवन बनाने की चेष्टा करें व परम लाभ प्राप्त करें।
वर्तमान समय में प्रस्तुत प्रवचनों की उपादेयता गृहस्थियों, भाइयों, बहिनों, साधकों, विद्यार्थियों अर्थात् समाज के सभी वर्गों के लिये है। आवश्यकता केवल लाभ लेने के निश्चय की है। इन सब बातों को पढ़ने-सुनने मात्र से भी लाभ तो होता ही है, पर काम में लाने से बहुत लाभ होता है। अत: पाठकों से निवेदन है कि इन प्रवचनों में कही गयी बातों के अनुसार जीवन बनाने की चेष्टा करें व परम लाभ प्राप्त करें।
प्रकाशक
।।श्रीहरि:।।
प्रवचन-1
समाज की जिम्मेवारी-बड़ों पर
समाज की जिम्मेवारी समाज में बड़े कहलाने वाले पर होती है। जैसे, घर में
कोई समस्या आती है, तो घर में जो मुख्य होते हैं, उन पर ही उसके
जिम्मेवारी होती हैं। ऐसे समाज की जिम्मेवारी जो समाज में बड़े कहलाने
वाले होते हैं, उनकी होती है। उस जिम्मेवारी का पालन कैसे किया जाय ?
इसमें एक मार्मिक बात हैं कि अपने कर्तव्य को समझा जाय। आज बड़े-बड़े अनर्थ होते हैं, उनमें बाह्य-हेतु बताये जाते हैं, वे भी ठीक हैं; परन्तु मूल में विचार हम देखते हैं, तो जो साधु और ब्राह्मण हैं, ये अपने कर्तव्य को ठीक तरह पालन नहीं कर रहे हैं।
इसमें एक मार्मिक बात हैं कि अपने कर्तव्य को समझा जाय। आज बड़े-बड़े अनर्थ होते हैं, उनमें बाह्य-हेतु बताये जाते हैं, वे भी ठीक हैं; परन्तु मूल में विचार हम देखते हैं, तो जो साधु और ब्राह्मण हैं, ये अपने कर्तव्य को ठीक तरह पालन नहीं कर रहे हैं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book